छूत पाक!
रीना पति के साथ उनके मित्र के यहाँ गयी , अपनी नौकरी के कारण उसकी पत्नी के साथ खास मौके पर ही मुलाकात होती थी। मित्र पति के साथ कहीं निकल गए और रीना और रश्मि बातों में लग गयीं। तभी आँगन की तरफ से आवाज आयी - " अरे आरती मुझे पानी दे दो , पानी का गिलास नीचे गिर गया है। "
"आरती नहीं है , वह शाम को आएगी।" रश्मि ने वहीँ बैठे बैठे बोल दिया।
"माताजी हैं कई साल से बिस्तर पर हैं , सारे काम वहीँ होते हैं , एक आया लगा रखी है वही सब करती है। सुनाई भी कम देता है।"
इतना कह कर वह फिर बातों में लग गयी , लेकिन माताजी की आवाज बार बार आ रही थी।
"क्या करूँ मेरा तो नवरात्रि का व्रत चल रहा है , मुझे दिन में खाना पीना भी होता है तो छूत पाक का ध्यान भी रखना पड़ता है। मैं वहां नहीं जाती हूँ।"
"अगर आरती नहीं आती है तो ?"
"तो सुबह ये ऑफिस जाने से पहले सारे काम निबटा कर जाते हैं। "
रश्मि उठ कर चाय बनाने चली गयी और माँ जी की आवाज फिर से आयी , आवाज की कातरता ने रीना को हिला दिया। कोई इंसान प्यासा हो और पानी न मिले। वह उठ कर गयी तो आँगन में एक छोटा सा कमरा था , उसी में माँजी लेटी हुई थीं। रीना ने गिलास में जग से पानी डाल कर उनको दे दिया।
"कुछ और चाहिए। "
" नहीं बेटा। तुम कौन हो? पहचाना नहीं। "
"माँजी मैं रीना रश्मि की सहेली। "
उधर रश्मि चाय बना कर कमरे में आ चुकी थी और रीना भी पहुँच गयी। रीना को बाहर से आते देख बोली 'अरे कहाँ चली गयी थी ?'
"माताजी को पानी देने के लिए। "
"आप भी तो व्रत हैं न?"
"जी , मगर मैं छूत पाक नहीं मानती। "
किसी बीमार लाचार खासकर जो हमपर निर्भर है उन आत्मीय जन की सेवा से बढ़कर कोई व्रत,उपवास के आडंबर या कर्मकांड नहीं...।
जवाब देंहटाएंसंदेशात्मक लघुकथा।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ६ अक्टूबर२०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंऐसे व्रतोपवास से क्या लाभ, जो जीते-जागते को पानी न दे सके
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