माँ मेरी माँ
मैं सबसे दूर बैठी
अब टीवी नहीं देखती
सबकी आवाजें
मेरे कानों में
गरम शीशे की तरह
पिघल कर बह रही होती है।
अपनी उस बहन की
चीखों , छटपटाने और संघर्ष करने के
अथक प्रयास को
महसूस कर काँप जाती हूँ।
मैं भी तो
इसी तरह से
अँधेरा होने पर
अन्दर ही अन्दर डरती हूँ
मन में ईश्वर को याद करती
तेज कदमों से
अपने उस कमरे की तरफ
बढती हूँ
और फिर अन्दर कदम रखते ही
झट से दरवाजा बंद कर
बिस्तर पर ढेर हो जाती हूँ
धन्यवाद देती हूँ
उस ईश्वर को
मैं सुरक्षित हूँ और
मेरी सारी बहनों को
वो सुरक्षित ही रखे।
तुम्हें मुझपर भरोसा है
मुझे खुद पर भरोसा है
लेकिन माँ उसकी माँ को भी तो
उस पर भरोसा था ,
फिर वो किसी के साए में थी
सुरक्षा का अहसास लिए
लेकिन
फिर क्या हुआ माँ ?
आज वो झूल रही है
जिन्दगी और मौत के बीच
कोई रक्षा कवच दे दो माँ
जिसके रहते
ये नराधम
भस्म हो जाए .
नज़रे उठाये किसी की तरफ तो
राख का ढेर हो जाएँ .
छूने की हिमाकत करें
तो टूट कर उनके हाथ झूल जाएँ।
एक ज्वाला निकले
हमारी आँखों से
वे किसी की अस्मिता को
देखने से पहले अंधे हों जाए।
न्याय हम अब मांगेगे नहीं
खुद मरे तो उन्हें भी मार डालेंगे
अब उन बहनों के जीवन
के बदले नराधमों की जान ले जायेंगे .
मैं सबसे दूर बैठी
अब टीवी नहीं देखती
सबकी आवाजें
मेरे कानों में
गरम शीशे की तरह
पिघल कर बह रही होती है।
अपनी उस बहन की
चीखों , छटपटाने और संघर्ष करने के
अथक प्रयास को
महसूस कर काँप जाती हूँ।
मैं भी तो
इसी तरह से
अँधेरा होने पर
अन्दर ही अन्दर डरती हूँ
मन में ईश्वर को याद करती
तेज कदमों से
अपने उस कमरे की तरफ
बढती हूँ
और फिर अन्दर कदम रखते ही
झट से दरवाजा बंद कर
बिस्तर पर ढेर हो जाती हूँ
धन्यवाद देती हूँ
उस ईश्वर को
मैं सुरक्षित हूँ और
मेरी सारी बहनों को
वो सुरक्षित ही रखे।
तुम्हें मुझपर भरोसा है
मुझे खुद पर भरोसा है
लेकिन माँ उसकी माँ को भी तो
उस पर भरोसा था ,
फिर वो किसी के साए में थी
सुरक्षा का अहसास लिए
लेकिन
फिर क्या हुआ माँ ?
आज वो झूल रही है
जिन्दगी और मौत के बीच
कोई रक्षा कवच दे दो माँ
जिसके रहते
ये नराधम
भस्म हो जाए .
नज़रे उठाये किसी की तरफ तो
राख का ढेर हो जाएँ .
छूने की हिमाकत करें
तो टूट कर उनके हाथ झूल जाएँ।
एक ज्वाला निकले
हमारी आँखों से
वे किसी की अस्मिता को
देखने से पहले अंधे हों जाए।
न्याय हम अब मांगेगे नहीं
खुद मरे तो उन्हें भी मार डालेंगे
अब उन बहनों के जीवन
के बदले नराधमों की जान ले जायेंगे .
दुखद है ऐसी घटनाओं ने हमारी बच्चियों को अन्दर तक हिला दिया है ये इस बच्ची की कविता में स्पष्ट हो रहा है ये कैसा वातावरण दे रहे हैं हम अपनी बच्चियों को सच कहा तुमने अब न्याय पर भी भरोसा नहीं रहा रहम की भीख नहीं मांगेंगे हमें ही दुर्गा रण चंडी बनकर मैदान में उतरना है नहीं डरना है अपने बच्चों को एक सुरक्षित जिंदगी देनी है ये सब माताओं की जंग है डरना नहीं मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं
जवाब देंहटाएंरेखा जी ! बेटी ने बहुत सारगरभित एवं सार्थक रचना रची है ! मेरी अनंत शुभकामनाएं उन्हें ! इसी विषय पर मेरी रचना है मेरे ब्लॉग 'सुधीनामा' पर ! आप भी उसे ज़रूर पढियेगा और अपनी बेटी को भी ज़रूर पढ्वाइयेगा ! शायद सब मिल कर इस समस्या का कोई उचित निदान ढूँढ निकालें ! केवल आतंकित होने से तो काम नहीं चलेगा ना !
जवाब देंहटाएंअब तो एक यही रास्ता बचा है "जैसे को तैसा" एक बार फिर जरूरत है "नारी" को रानी लक्ष्मी बाई बनने की दुर्गा या काली का असली रूप लेने की तभी अंत होगा शायद इस वहशी दरिंदों का ...
जवाब देंहटाएंबेटी बिलकुल सही सोच रहा है. अब लड़कियों को शस्त्र ले कर ही बाहर निकलना चाहिये.आज के समाज को चंडिका की ही ज़रूरत है
जवाब देंहटाएंबिलकुल सटीक सोच ... नरधम को मारना ही होगा ... भीख मांगने से कुछ नहीं मिलता ।
जवाब देंहटाएंअब यही करने का वक्त आ गया है …………सशक्त रचना दर्द की सटीक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंदर्द ही दर्द
जवाब देंहटाएंसच ऐसा ही कुछ देखने मिलने वाला है...
जवाब देंहटाएंऐसा ही हो ...
जवाब देंहटाएंमंगलकामनाएं पुत्रियों के लिए !
गहन अनुभूतियों को सहजता से
व्यक्त किया है आपने अपनी रचना में
सार्थक रचना
बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग jyoti-khare.blogspotin
में भी सम्मलित हों ख़ुशी होगी