अंतर्वेदना

अभी तक ये ब्लॉग मेरी माँ ने संभाला था लेकिन इस बार जब मेरे काम की दृष्टि से इसके उपयोग को उन्होंने बताया तो मैंने इसको खुद ही लिखने का संकल्प लिया है और आशा करती हूँ कि मेरे द्वारा दी गयी जानकारी आप सबके लिए उपयोगी साबित होगी. हो सकता है कि आप या आपके आस पास के लोग जानकारी के अभाव में सही दिशा में न जा रहे हों तो इससे सही दिशा मिल सके मेरे लेखन की इसी में सफलता होगी.

बुधवार, 1 जनवरी 2025

आत्मसम्मान !(18)

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विदा कर आये ।" लेकिन अंदर ही अंदर उसकी आत्मा धिक्कार रही थी, पुत्र होकर भी मां को कंधा तक न दे पाया।● आत्मसम्मान !            ...
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क्षरण !(7)

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                                  क्षरण  !              "अरे ये क्या , हम क्या थे और क्या हो गये ?"                "तुम हो कौ...
गुरुवार, 26 दिसंबर 2024

ईर्ष्या!

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 मोहिनी राशि के घर में आई तो उसकी आँखें लाल हो रहीं थी। राशि ने देखते ही पूछा - "मोहिनी कुछ हुआ क्या?"     "नहीं मैम साब कुछ ...
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शुक्रवार, 22 नवंबर 2024

मानवता ! (88)

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         मानवता !                               सर्वेंट क्वार्टर में ड्राइवर की पत्नी पीड़ा से तड़प रही थी।  कोई ले जाने वाला नहीं था और ...
बुधवार, 13 नवंबर 2024

हवेली की आत्मा ।*

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हवेली की आत्मा!                                    वह मुरझाई सी एक कमरे में उदास बैठी थी । वर्षों से खाली हवेली के कमरों के आगे बने बरामदों...
सोमवार, 4 नवंबर 2024

खेप !(67)

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.                                                            खेप !       "हां राम भरोसे नई खेप कब तक मिलेगी? बाहर वालों का दबाव बढ़...

किन्नर ! (106)***

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किन्नर !            "हे ईश्वर मेरा क्या दोष है? जो मुझे इस रूप में पैदा किया।  क्या हमारे जीने की इच्छाएं , कामनाएं सिर्फ औरों को देन...
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मेरे बारे में

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रेखा श्रीवास्तव
मैं अपने बारे में सिर्फ इतना ही कहूँगी कि २५ साल तक आई आई टी कानपुर में कंप्यूटर साइंस विभाग में प्रोजेक्ट एसोसिएट के पद पर रहते हुए हिंदी भाषा ही नहीं बल्कि लगभग सभी भारतीय भाषाओं को मशीन अनुवाद के द्वारा जन सामान्य के समक्ष लाने के उद्देश्य से कार्य करते हुए . अब सामाजिक कार्य, काउंसलिंग और लेखन कार्य ही मुख्य कार्य बन चुका है. मेरे लिए जीवन में सिद्धांत का बहुत बड़ी भूमिका रही है, अपने आदर्शों और सिद्धांतों के साथ कभी कोई समझौता नहीं किया. अगर हो सका तो किसी सही और गलत का भान कराती रही यह बात और है कि उसको मेरी बात समझ आई या नहीं.
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