शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2012

ये कैसा दशहरा ?

                          दशहरा जब से कानपुर  से बाहर  निकले हैं तब से देखा ही नहीं है , नहीं अपनी सहेलियों के साथ अरमापुर का दशहरा देखने का मजा ही कुछ और होता था . 
                            इस बार एक इत्तेफाक है कि मेरे निवास के ठीक सामने वाले पार्क में दशहरा मनाया जा रहा था उसमें कई दिनों से तैयारी चल रही थी और रावण,  मेघनाद और कुम्भकरण के पुतले खड़े थे। बस सुबह उनको देख देती थी फिर अपने काम पर।  जब दशहरे की छुट्टी थी तो मानी हुई बात है कि  मैं अपने हॉस्टल में ही थी। जोर शोर से प्रचार हो रहा था कि  यहाँ पर राखी सावंत और इमरान हाश्मी आ रहे हैं और उन्हीं लोगों के हाथ से रावण जलाया जाएगा  
                        सारा दिन तो इसी इन्तजार में निकल गया कि  ये लोग आयेंगे राखी सावंत का तो नहीं हैं इमरान हाश्मी का सबको इन्तजार था और इस बात का भी कि पार्क ठीक हॉस्टल के सामने हमें उतर कर नीचे जाना भी नहीं था बस टैरेस पर कुर्सियां डाल  कर बैठ जाना था। सारी लड़कियाँ सुबह से ही इन्तजार में थी। 
                          आखिर इन्तजार की घड़ियाँ ख़त्म हो गयी और शाम को भीड़ लगनी शुरू हो गयी . कुछ देर बाद पता चला कि  इमरान हाश्मी तो आ नहीं रहे हैं कोई और स्थानीय कलाकार आ गया और राखी सावंत जरूर आ गयी। अब न हमें उनके डांस में रूचि थी और न ही उनको देखने में सो हम सब कमरे में जाकर टीवी पर देखने लगे  फिर पता चला कि  राखी सावंत ने कुछ बोलना शुरू किया और वह सोनिया गाँधी जिंदाबाद के नारे लगा लगा  कर लोगों में  कांग्रेस का प्रचार करने लगी . हम लोगों की समझ नहीं आ रहा था कि ये रामचन्द्र जी की जय के जगह पर सोनिया गाँधी कहाँ से आ गयी? ये तो दशहरा पूरे राजनैतिक रंग में रंग गया . वह भी ठीक था लेकिन  राखी ने आनन फानन में रावण के पुतले में आग लगायी और चलती बनी . मेघनाद और कुम्भकरण के पुतले ऐसे ही खड़े रहे . बाद में उनको किसी ने आग लगायी होगी क्योंकि हम तो ये तमाशा देख कर अन्दर आ गए थे।
                         मैं ये नहीं समझ पायी कि रामलीला का हिस्सा ये राखी सावंत बनी और फिर उनको हिस्सा बनाने वालों को ये भी नहीं पता कि  पहले कौन से पुतलों को जलाया जाता है। ये एक राजनैतिक रैली बन कर रह गयी  क्योंकि दिल्ली सरकार का पार्क और कांग्रेस की सत्ता ने लोगों के मनोरंजन का इंतजाम जो किया था और हम ठगे से देख रहे थे ये कैसा दशहरा हुआ?

7 टिप्‍पणियां:

  1. हर राजीनीति पार्टी हर त्यौहार को ...अपने ही रंग में रंगने को आतुर रहती है ...त्यौहार की महत्वता से किसी को कोई मतलब ही नहीं रहा ....बस पैसा फेंको और तमाशा देखो...

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  2. iska thik ulta mere mohalle ke samne tha.. dashahra committee par BJP ke netaon ka prabhutva tha.. jabardasti ke naare lagaye ja rahe the... raam chandra jee ke baad aadwani aur modi ke bhi...!!
    to bas har jagah marketing chal rahi hai,... isko aise hi jhelna hoga...

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  3. और क्या उम्मीद की जा सकती है ………जैसा राजा वैसी प्रजा

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  4. हमे तो इस का नाम भी सुनना अच्छा नही लगता, बतमिजीयो का खजाना हे...

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