प्रियंका श्रीवास्तव

प्रियंका श्रीवास्तव

गुरुवार, 26 दिसंबर 2024

ईर्ष्या!

 मोहिनी राशि के घर में आई तो उसकी आँखें लाल हो रहीं थी। राशि ने देखते ही पूछा - "मोहिनी कुछ हुआ क्या?"

    "नहीं मैम साब कुछ भी नहीँ।"

    "नहीं, कुछ छिपा रही हो, कुछ तो है।"

   थोड़ी सी सहानुभूति पाकर मोहिंनी रो पड़ी। राशि ने उसे रोने दिया कि दिल हल्का हो जायेगा।

     "अब बतलाओ कि हुआ क्या है?"

      "आज मैं कपूर मैम साब के यहाँ काम पर गई तो उन्होंने कहा -  "अब तुमको कल से काम पर आने की जरूरत नहीं है।"

        मुझे कुछ समझ में नहीं आया - "मैम साब मुझसे क्या गलती हो गई और गलती हो भी गई हो तो माफ कीजिएगा। मैं कितने वर्षों से आप के यहाँ काम कर रही हूँ।"

   "नहीं कोई बात नहीं, कोई भी गलती नहीं की तुमने लेकिन फिर भी मैं अब तुम्हें अपने घर में नहीं रख सकती।"

       "फिर भी कोई कारण तो बता ही दीजिए ताकि मैं भी अपने दिल में तसल्ली कर लूँ कि आपने मुझे क्यों निकाल दिया है?" 

       "इसका कारण तुम नहीं बल्कि इसका कारण है यह सिस्टम, जिसने हम जैसे लोगों से हजारों रुपए वसूल करनेवाले स्कूलों को बनाया और फिर हर महीने अलग-अलग तरीके से रुपए वसूलते रहते हैं।" 

         "आज जो मैंने स्कूल में देखा तो मुझे लगा कि तुम्हें अपने बच्चों के कारण मुझसे ज्यादा महत्व मिल रहा है, तो फिर इससे अच्छा है मैं तुम्हें काम से अलग कर दूँ ताकि कल को सोसायटी वाले ये न कहें कि मेरा बच्चा मेरी ही नौकरानी के बच्चे से पीछे हो गया।" 

         "लेकिन मैम साब इसमें मेरा क्या दोष है? मैंने क्या किया है जबकि मेरे बच्चे को तो सरकार ने उस स्कूल के लिए चुना। मैं तो फीस भी नहीं भर सकती हूं और न ही मैं उसे स्कूल की किताबें खरीद सकती हूँ।" 

        "यही तो एक कारण है कि आज जब तुम्हारा बच्चा वहाँ पर ट्रॉफी ले रहा था और प्रिंसिपल ने तुमको वहाँ बुलाकर तुम्हारी तारीफ की और मेरे जैसे कितने पेरेंट्स जो इतना पैसा खर्च करते हैं, इतना डोनेशन देते हैं तब हमारा बच्चा उसे स्कूल में पहुँच पाता है। फिर फायदा क्या है कि मैं वहांँ जाकर तुम्हारे सामने अपने को छोटा महसूस करूँ, इससे बेहतर है कि तुम मेरे घर से छोड़ दो फिर तुम्हें जहाँ जी चाहे वहाँ करो। मुझे यह तो नहीं लगेगा कि मेरी कमाई पर ही पलने वाली एक नौकरानी का बेटा मेरे बेटे से आगे हो और वही नौकरानी वहाँ मंच पर खड़ी हो और मैं नीचे सीट पर बैठी होऊँ। इसलिए मैं आगे से ऐसी किसी भी स्थिति को सामना करने के लिए तैयार नहीं हूँ। और हां अब आगे से अपने बच्चे को मेरे पास पढ़ने के लिए भी मत भेजना।"

       "मैम आपको मैं ट्यूशन की फीस देती रहूँगी, आप मेरे बच्चे को पढ़ाती रहें।"

       "बिल्कुल नहीं मैं सारा समय अपने बच्चों को ही दूँँगी ताकि कल वह तुम्हारे बच्चे के जगह पर खड़ा हो और तुम्हारी जगह पर मैं।"

        

     मोहिनी की बात सुनकर राशि ने मन में सोचा - ओह तो ये पढ़े लिखे भी लोग इतनी गिरी सोच रखते है। मेधा पैसों से नहीं खरीदी जा सकती।

3 टिप्‍पणियां:

  1. प्रतिभा किसी भी छोटी सोच की मोहताज नहीं।
    सराहनीय,संदेशात्मक लघुकथा।
    सादर।
    -------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ दिसम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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