प्रियंका श्रीवास्तव

प्रियंका श्रीवास्तव

गुरुवार, 27 सितंबर 2012

माँ मेरी माँ !




चित्र गूगल के साभार ( कुछ मानसिक असामान्यता के शिकार बच्चे )


माँ 
वह शब्द है


जिसके गोद में सिर  रख कर 
भूल जाते हैं हर गम .
नहीं मालूम है 
कितने कष्ट उठाये होंगे?
बेटी , बेटी 
करते कलम नहीं रुकती 
सारी माँओं  की 
आज कहूं मैं 
माँ की कहानी।
वो नन्हे बच्चे 
जो अपने से दूर है 
नहीं समझ पाते हैं 
कुछ बातों को,
कैसे उनकी माँ 
आती हैं मेरे पास 
फिर भर कर आँखों में आंसूं 
उनके हर आंसूं में होता है 
एक सवाल 
क्या मेरा बच्चा 
ठीक हो जाएगा?
और मैं 
यह जानकर भी 
वो ठीक नहीं हो सकता 
झूठी  दिलासा दे कर 
उन्हें कुछ सिखाने में 
अपने को झोंक देती हूँ। 
फिर छोटे छोटे से सुधार  भी 
देख कर 
वे अगले दिन 
एक टिफिन में 
मेरे लिए 
लाती  कुछ 
मीठा खाने को 
मेरी बेटी कल 
सीढियां चढ़ी 
पहली बार .
मेरा बेटा 
अब शांत रहने लगा है।
अब वो कर सकता है 
अपने रोज के काम 
फिर नयी आशा से 
उसी तरह नियमित 
मेरे पास बच्चों को लाती  हैं 
वो मांएं 
जो चाहती है 
कि मेरी मौत से पहले 
मेरी संतति 
अपने काम की समझ अर्जित कर ले 
प्रणाम उस माँ को 
कितना धैर्य 
उसमें है? 
पहले नौ महीने गर्भ में 
फिर धरती पर 
अपूर्णता के अहसास के बाद 
उसे पूर्ण होने की आस 
उन्हें एक आशा में 
जीवित रखता है। 
वे बच्चे धन्य है 
जिन्हें ऐसी माँ मिलीं .
माँ तुम्हें शत शत नमन !

9 टिप्‍पणियां:

  1. प्रियंका के कार्य क्षेत्र का अनुभव,और उसका मन- दोनों समाहित हैं हर भाव में

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  2. पूर्णता माँ को लेकर लिखी गई अलग सी कविता ....बहुत खूब

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  3. मां के प्रति प्रकट उद्गार बेहद भावुक कर देने वाले हैं।

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  4. प्रियंका धन्य है जो ऐसे कार्य मे संलग्न है ………बेहद भावप्रवणता है उसके लेखन मे ………शानदार प्रस्तुति।

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  5. शायद माँ के इसी जज़्बे को देखकर स्वयं ईश्वर ने भी माँ को खुद के ऊपर का दर्जा दिया होगा। अपने लिए तो इस दुनिया में सभी जीते हैं मगर औरों के लिए जीना बहुत कम लोगों को आता है। एक निराशा भरे जीवन में आशा की ज्योत जागते हुए किसी का मनोबल बढ़ते रहना आसान काम नहीं है। वाकई hats off to Priyanka बहुत ही अच्छा लिखा है भावपूर्ण अभिव्यक्ति।

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  6. वाह!! माँ को समर्पित एक सार्थक अभिव्यक्ति...शाबास...मन प्रफुल्लित हो गया!!

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