शुक्रवार, 22 नवंबर 2024

मानवता ! (88)

         मानवता !     

     
                   सर्वेंट क्वार्टर में ड्राइवर की पत्नी पीड़ा से तड़प रही थी।  कोई ले जाने वाला नहीं था और पति के कर्मों का फल तो अब उसे ही भोगना था। वह भी इतनी शर्मिंदा थी कि मालकिन से आँखें मिलाने का साहस कैसे करती ? न वह कहीं जा सकती थी और न मालकिन से आँखें मिला सकती थी ।

                 इरा को ये पता था कि प्रसव  के लिए निशा कभी भी जा सकती है।  अपना दुःख तो अब खत्म नहीं होगा सोच कर उसने महाराजिन को बुलाया और कहा - "जा देख कर आ , वह ठीक तो है न "

"आप क्या कह रही हैं ?" महाराजिन ने विस्मय से कहा। इसके पति ने ही फिरौती के लिए इस घर का चिराग बुझाया है।
 
" लेकिन इसमें उस औरत का और आने वाले का क्या दोष ?"

                       महाराजिन ने जाकर देखा तो निशा दर्द से बेहाल थी,  उसने आकर मालकिन को बताया।  इरा ने जल्दी से गाड़ी निकाली और निशा को लेकर अस्पताल भागी। 

                      डॉक्टर ने भी बड़ी तत्परता से निशा का ऑपरेशन किया क्योंकि बच्चे के गले में नाल फँसी हुई थी , अगर थोड़ी सी भी देर हो जाती तो कुछ भी हाथ नहीं लगने वाला था। इरा ने बच्चे को गोद में लेकर सीने से लगा लिया मानो उसको अपना बेटा वापस मिल गया हो।

                       जब निशा होश में आयी तो उसने सामने इरा को बच्चे को गोद  में लिए देखा। उसकी दोनों आँखों की कोर से आँसूं लुढ़क गए।  उसके पति ने जिस घर में अंधेरा किया। उसी ने जीवन में उजाला कर दिया।

   

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