चित्र गूगल के साभार ( कुछ मानसिक असामान्यता के शिकार बच्चे ) |
माँ
वह शब्द है
जिसके गोद में सिर रख कर
भूल जाते हैं हर गम .
नहीं मालूम है
कितने कष्ट उठाये होंगे?
बेटी , बेटी
करते कलम नहीं रुकती
सारी माँओं की
आज कहूं मैं
माँ की कहानी।
वो नन्हे बच्चे
जो अपने से दूर है
नहीं समझ पाते हैं
कुछ बातों को,
कैसे उनकी माँ
आती हैं मेरे पास
फिर भर कर आँखों में आंसूं
उनके हर आंसूं में होता है
एक सवाल
क्या मेरा बच्चा
ठीक हो जाएगा?
और मैं
यह जानकर भी
वो ठीक नहीं हो सकता
झूठी दिलासा दे कर
उन्हें कुछ सिखाने में
अपने को झोंक देती हूँ।
फिर छोटे छोटे से सुधार भी
देख कर
वे अगले दिन
एक टिफिन में
मेरे लिए
लाती कुछ
मीठा खाने को
मेरी बेटी कल
सीढियां चढ़ी
पहली बार .
मेरा बेटा
अब शांत रहने लगा है।
अब वो कर सकता है
अपने रोज के काम
फिर नयी आशा से
उसी तरह नियमित
मेरे पास बच्चों को लाती हैं
वो मांएं
जो चाहती है
कि मेरी मौत से पहले
मेरी संतति
अपने काम की समझ अर्जित कर ले
प्रणाम उस माँ को
कितना धैर्य
उसमें है?
पहले नौ महीने गर्भ में
फिर धरती पर
अपूर्णता के अहसास के बाद
उसे पूर्ण होने की आस
उन्हें एक आशा में
जीवित रखता है।
वे बच्चे धन्य है
जिन्हें ऐसी माँ मिलीं .
माँ तुम्हें शत शत नमन !